भोजन का अधिकार प्रकृति प्रदत मानवाधिकार है

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खाद्य पदार्थ की बर्बादी प्रमुख समस्या बन गई है। दुनिया भर में सभी खाद्य पदार्थों का लगभग 50 प्रतिशत बर्बाद हो जाता है और कभी भी जरूरतमंदों तक नहीं पहुंचता है। मानव उपभोग के लिए लगभग एक तिहाई भोजन विश्व स्तर पर बर्बाद हो जाता है।
मानव जीवन के लिए खाद्य पदार्थों की सुरक्षा अति महत्वपूर्ण है। लोगों को सुरक्षित और पौष्टिक भोजन का प्रकृति प्रदत अधिकार है। राज्य का दायित्व है कि प्रकृति की ओर से प्रदान किए गए अधिकारों का संरक्षण और संवर्धन करे। खाद्य सुरक्षा का अधिकार भी इसमें शामिल है।

संयुक्त राष्ट्र द्वारा सात जून को विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र ने विश्व स्वास्थ्य संगठन और खाद्य और कृषि संगठन को खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा देने की जिम्मेदारी दी है। इस दिवस को आयोजित करने का मुख्य उद्देश्य देश और दुनिया के प्रत्येक व्यक्ति को पौष्टिक और सन्तुलित भोजन सुलभ कराना है। साथ ही सुरक्षित खाद्य मानकों को बनाए रखने में सतत जागरूकता उत्पन्न करना और खाद्य जनित रोगों के कारण होने वाली मौतों को कम करना है। विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस 2021 का विषय है स्वस्थ कल के लिए आज का सुरक्षित भोजन।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक दुनिया में हर साल चार लाख बीस हजार लोग दूषित खाने की वजह से अकाल मौत के शिकार हो जाते है। दुनियाभर में लगभग 10 में से एक व्यक्ति दूषित भोजन का सेवन करने से बीमार पड़ जाता है जो कि सेहत के लिए एक बड़ा खतरा है। इस वर्ष 7 जून को विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस हम ऐसे समय में मनाने जारहे है जब भारत भूख और गरीबी के दल दल से बाहर निकलने के लिए निरंतर प्रयासरत है। खाद्य सुरक्षा दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य पूरी दुनिया में विशेष रूप से संकट के समय खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा देना है। कोरोना महामारी की गिनती भी इसी संकट से की जा सकती है जब लाखों लोग बेरोजगार होकर रोजी रोटी के लिए दर दर भटक रहे है। भारत सहित दुनिया के अनेक देशों ने संकट में अपने जरुरतमंद देशवासियों की मदद के लिए हाथ बँटाये है मगर यह नाकाफी है। गौरतलब है विश्व खाद्य कार्यक्रम ने अपने जीवन रक्षक कार्यों के लिए 2020 का नोबेल शांति पुरस्कार जीता है। कोरोना संकट के कारण लाखों पुरुष, महिला और बच्चे भुखमरी का सामना कर रहे हैं।

खाद्य पदार्थ की बर्बादी प्रमुख समस्या बन गई है। दुनिया भर में सभी खाद्य पदार्थों का लगभग 50 प्रतिशत बर्बाद हो जाता है और कभी भी जरूरतमंदों तक नहीं पहुंचता है। मानव उपभोग के लिए लगभग एक तिहाई भोजन विश्व स्तर पर बर्बाद हो जाता है। दुनिया में लाखों लोग भूखे पेट सोने को मजबूर है या आधा पेट खाकर जीवन जीते हैं, वही कुछ ऐसे भी लोग हैं जो बहुत सारा भोजन बर्बाद कर देते हैं। विकासशील देशों में सबसे अधिक अन्न सही रख−रखाव न हो पाने के कारण भी बर्बाद हो जाता हैं जो बेहद चिंतनीय है। अन्न या भोजन की बर्बादी के प्रति हम सबको जागरूक होना चाहिए और दूसरों को भी जागरूक करना चाहिए ताकि एक सशक्त समाज और देश का निर्माण हो सके।

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम ने अपनी फूड वेस्ट इंडेक्स रिपोर्ट 2021 में देश और दुनिया का ध्यान भोजन की बर्बादी की ओर दिलाया है। रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2019 में खाने के लिये उपलब्ध भोजन का 17 प्रतिशत बर्बाद हो गया और लगभग 69 करोड़ लोगों को खाली पेट सोना पड़ा था। खाने की बर्बादी को लेकर दुनियाभर में चिंता व्यक्त की जा रही है। यही भोजन यदि गरीबों को सुलभ कराया जाये तो भूखे पेट सोने वालों की कमी आएगी। भारत भी खाना बर्बाद करने वाले देशों में शामिल है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम ने खाने की बर्बादी को लेकर डराने वाले आंकड़े जारी किए। इसके मुताबिक भारत में हर साल प्रति व्यक्ति 50 किलो खाने की बर्बादी हो रही है। रिपोर्ट के अनुसार सबसे ज्यादा खाना लोग अपने घरों के भीतर बर्बाद करते हैं। वे जरूरत से ज्यादा खाना बनाकर फिर बचे खाने को फेंकते संकोच नहीं करते। होटलों और खाने−पीने के दूसरे स्थान भी इस कार्य में आगे है। खुदरा दुकानदार भी अनाज का ठीक से भंडारण नहीं कर पाते और खराब होने पर उसे फेंकना पड़ जाता है।

आपने कई बार सुना होगा कि लोग अपना खाना बर्बाद करते हैं या आपने अपने घर में सुना होगा कि, आपके माता−पिता हमेशा आपको खाने को बर्बादी न करने की सलाह देते हैं, क्योंकि वे बखूबी समझते है कि खाना उनके लिए क्या माइने रखता है। एक कहावत बड़ी प्रचलित है कि इतना ही लो थाली में जो ना जाए नाली में। लेकिन आज इस बात पर कोई ध्यान नहीं देता है। अभी भी हमारे देश के कई राज्यों जैसे मध्य प्रदेश, बिहार, झारखंड भुखमरी से जूझ रहे हैं। इन राज्यों के ग्रामीण इलाकों में रहने वाले गरीबो को बहुत ही मुश्किल से दो समय की रोटी नसीब होती है। कई बार तो ये एक समय ही खाकर सो जाते है। इस समस्या के समाधान के ठोस उपाय करने के लिए सभी संबद्ध व्यक्तियों संस्थाओं को प्रोत्साहित करना है। यह दिन अब रश्मि होता जारहा है। ढोल नगाड़ा पीटने से न खाद्य सुरक्षा होगी और न हीं भूखे को खाना मिलेगा। यह हमारी जमीनी सच्चाई है जिसे स्वीकारना ही होगा।

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