करगिल युद्ध में शहीद रघुबीर सिंह तेवतिया ने दिया था अदम्य साहस का परिचय

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फरीदाबाद। गांव सोतई निवासी वीरांगना मेमवती को अपने वीर पति रघुबीर सिंह तेवतिया पर गर्व है कि मातृभूमि की रक्षा खातिर देश पर कुर्बान हो गए और अब उनकी चाह है कि पोते प्रतीक और चिराग सेना में जाएं। इसके लिए दोनों बच्चों में देशप्रेम के संस्कार भरे जा रहे हैं, ताकि जैसे-जैसे वो बड़े हों, खुद को सेना में जाने के लिए तैयार करें। कारगिल विजय दिवस के अवसर पर जब बात रघुबीर सिंह के सेना में शौर्य दिखाने व राष्ट्र की रक्षा खातिर प्राणों को न्यौछावर करने की छिड़ती है, तो मेमवती की आंखें नम हो जाती हैं, पर गर्व से भरे शब्दों के साथ कहती हैं कि एक वीरांगना के रूप में खुद को गौरवान्वित महसूस करती हैं कि उनके पति ने सामने प्रत्यक्ष मौत देखने के बावजूद मोर्चा छोड़ने की बजाय सीने पर गोली खाकर शहादत को वरण किया। न सिर्फ तेवतिया परिवार, बल्कि समूचे गांव को रघुबीर सिंह के बलिदान पर गर्व है।

सेना में सिपाही हुए थे भर्ती
गांव सोतई में रघुबीर सिंह का जन्म 22 मार्च, 1966 को हुआ। उन्हें सेना में भर्ती होने का जुनून था। इसलिए कड़ी मेहनत के बाद वे एक अगस्त, 1983 को सात जाट रेजीमेंट में बतौर सिपाही भर्ती हुए और बाद में उन्हें 5 राज राइफल में भेज दिया गया।

15 मार्च 2000 को हुए थे शहीद
कारगिल युद्ध में पराजय से आहत दुश्मन देश ने कश्मीर में आतंकवादी घटनाओं में और बढ़ोतरी कर दी थी। रोज कहीं न कहीं घटनाएं हो रही थी। रघुबीर सिंह की रेजीमेंट की भी पोस्टिंग यहीं पर थी। 15 मार्च 2000 को कश्मीर के बादामपुर में भारतीय सैन्य टुकड़ी का सामना आतंवादियों से हुआ।

इस दौरान पता लगा कि आतंकवादी एक खंडहर में छिपे हैं। रघुबीर सिंह भी अपने साथी सैनिकों के साथ अलर्ट हो गए और दोनों ओर से ताबड़तोड़ गोलियां बरसनी शुरू हो गई। रघुबीर सिंह व साथी सैनिकों ने एक के बाद एक चार आतंकवादियों को मार गिराया। अब ये सुनिश्चित करना था कि सभी आतंकवादी मरे हैं या नहीं, साथ ही उनके हथियार अपने कब्जे में लेने थे। इसलिए रघुवीर सिंह खंडहर में चले गए। वहां दहशतगर्द घायल अवस्था में था।

रघुबीर जैसे ही उसकी राइफल लेने की ओर आगे बढ़ा, तो दहशतगर्द हरकत में आया और रघुबीर सिंह की छाती में गोली मार दी। गोली लगने के बाद भी रघुबीर ने हिम्मत नहीं हारी और उस आतंकवादी को भी ढेर कर बाहर की तरफ आकर साथियों को बताया कि उसे गोली लगी है। साथी सैनिक रघुबीर सिंह को पांच किलोमीटर तो सेना के ट्रक में लेकर आए, फिर हेलीकाप्टर से श्रीनगर अस्पताल में भर्ती कराया। यहां उन्होंने अंतिम सांस ली ।

रघुबीर सिंह के भतीजे सुरेंद्र तेवतिया ने कहा कि हमें अपने चाचा पर गर्व है। मैं अपने बेटे प्रतीक और नरेश अपने बेटे चिराग को सेना में जाने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। उसी अनुरूप उनमें संस्कार भरे जा रहे हैं। बेटी राधिका भी समाजसेवा की खातिर आइएएस अधिकारी या फिर डाक्टर बनना चाहती है। हमने शहीद रघुबीर सिंह फाउंडेशन भी बनाया है। हमारी चाची वीरांगना मेमवती इस फाउंडेशन की मैनेजिंग ट्रस्टी हैं व हमारे पिता शिवदयाल इसके सदस्य हैं। इस फाउंडेशन के जरिए सामाजिक गतिविधियां संचालित होती हैं।

सरकार द्वारा शूरवीर रघुबीर सिंह को सम्मान के रूप में कारगिल शहीद का दर्जा दिया। सरकार ने उनके बेटे नरेश को नौकरी भी दी और नियमों के अनुरूप सहायता की। उनके नाम से गांव सोतई के सरकारी स्कूल का नाम शहीद रघुबीर सिंह राजकीय उच्च विद्यालय रखा गया है। यहां पर शहीद के नाम से स्मारक बनवाया गया है। अब यह वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय है। बलिदानी के परिवार सहित अन्य ग्रामीण स्मारक की देखरेख करते हैं।

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