यूरोपीय अदालत का फैसला मुस्लिम महिलाओं के हिजाफ पर रोक लगा सकते है एंप्लॉयर

कर्मियों को हिजाब जैसे धार्मिक प्रतीक चिह्न पहनने से रोक सकते हैं नियोक्ता

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यूरोप –  यूरोपीय संघ  की सुप्रीम  अदालत ने 15 जुलाई को फैसला सुनाया  कि कोई भी कंपनी अपने कर्मियों को हिजाब जैसे धार्मिक प्रतीक चिह्न या किसी राजनीतिक विचारधारा को दर्शाने वाले प्रतीक चिह्न या मनोवैज्ञानिक प्रतीक को पहनने से मना कर सकते हैं। लग्जमबर्ग आधारित न्यायाधिकरण ने हालांकि यह भी कहा कि 27 देशों वाले यूरोपीय संघ की अदालतों को यह देखना होगा कि क्या प्रतिबंध कंपनी  की तरफ से ‘‘वास्तविक आवश्यकता” पर आधारित है।

अदालत ने कहा कि कंपनियाँ अपनी सोच के हिसाब से सामाजिक संघर्षों को रोकने के लिए या फिर ग्राहकों के समक्ष खुद को निष्पक्ष प्रदर्शित करने के लिए इस तरह के फैसले ले सकती है। साथ ही यूरोप के देशों से कहा है कि वो अपने-अपने कानून के हिसाब से ‘धार्मिक आज़ादी’ की व्याख्या कर इस फैसले को लागू कर सकते हैं। 2017 में इन कंपनियों को कर्मचारियों के लिए एक सामान्य ड्रेस कोड तय करने की छूट दी गई थी।

इसने कहा कि उन्हें धार्मिक स्वतंत्रता के राष्ट्रीय कानून को ध्यान में रखने के साथ ही कर्मचारियों के अधिकारों और हितों पर भी विचार करना चाहिए। इस मामले को जर्मनी की दो महिलाएं ‘कोर्ट ऑफ जस्टिस ऑफ यूरोपियन यूनियन’ लेकर पहुंचीं जो अपने कार्यस्थलों पर हिजाब पहनती हैं। दोनों महिलाओं ने जर्मनी की अदालतों में शिकायतें दायर की थीं जहां से मामले को यूरोपीय संघ की शीर्ष अदालत में भेज दिया गया।

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कई इस्लामी प्रतिनिधियों एवं मुस्लिम एक्टिविस्ट्स ने इस फैसले का कठोरता से विरोध किया है। उनका कहना है कि इस फैसले से मुस्लिम महिलाओं पर बुरा असर पड़ेगा, जो हिजाब पहन कर काम पर जाती हैं। जर्मनी की दो महिलाओं को ऑफिस में हिजाब पहनने से रोक दिया गया था, जिसके बाद वो कोर्ट पहुँची थीं। इनमें से एक शिक्षक हैं और एक बैंक में बतौर कैशियर कार्यरत हैं।

ECJ ने स्पष्ट किया कि इन दोनों महिलाओं को वर्कप्लेस पर कंपनी द्वारा हिजाब पहनने से रोकना किसी प्रकार के भेदभाव की श्रेणी में नहीं आता है। कोर्ट ने कहा कि ये सभी मजहबों के मानने वालों पर बिना किसी भेदभाव के लागू हो रहा है।

ओपन सोसाइटी जस्टिस इनिशिएटिव (OSJI)’ ने इसका विरोध करते हुए कहा है कि इससे मुस्लिम अल्पसंख्यक महिलाओं को नुकसान हो सकता है। संगठन ने कहा कि खास तरह के कपड़ों को प्रतिबंधित करना और ऐसे कानून बनाना हमेशा से इस्लामोफोबिया का हिस्सा रहा है। साथ ही दावा किया है कि हिजाब पहनने से किसी को कोई हानि नहीं होती है। साथ ही उसने इसे हेट क्राइम व भेदभाव बढ़ाने वाला करार दिया।

 

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