वाराणसी। सनातन संस्कृति का सबसे पवित्र माह सावन 25 जुलाई से आरंभ हो रहा है। इस विशेष माह में शिव की आराधना, उपासना और अभिषेक से मनोभावना पूर्ण होती है। मन में भक्ति, शक्ति, पवित्रता, उल्लास, साधना और अध्यात्म की भावना उमड़ पड़ती है। सनातनी मन स्वयं को शिवभक्ति में समाहित करने लगता है। सावन माह के महात्म्य और शिव का पूजन कैसे करें।
यह है शिव का पूजन विधान: काशी हिंदू विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभागाध्यक्ष प्रो. विनय कुमार पांडेय के अनुसार सावन महीने में पवित्रता पूर्ण जीवन यापित करें। ॐ नम: शिवाय मंत्र का जाप करें। शिव का गंगाजल, गाय के दूध से अभिषेक करें। फल-फूल, बिल्वपत्र, धतूरा और अन्य पूजन सामग्रियों से शिव का दरबार सजाएं। उसके बाद शिव की महाआरती करें।
श्रवण नक्षत्र लगाएगा चार चांद: ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी के अनुसार देवाधिदेव महादेव को प्रसन्न करने के लिए यह मास समर्पित है। इस बार श्रावण मास की शुरुआत रविवार से तो समाप्ति भी रविवार को ही हो रही है, जो बेहद खास है। प्रतिपदा को श्रवण नक्षत्र का संयोग चार चांद लगाने वाला होगा। सावन में नवग्रह पूजन विशेष फलदायी होता है।
इन बातों का रखें ध्यान
संत समाज को वस्त्र, दूध, दही, पंचामृत, अन्न, फल का दान करें।
स्कंदपुराण के अनुसार सावन माह में एक समय भोजन करना चाहिए।
पानी में बिल्वपत्र या आंवला डालकर स्नान करने से पाप का क्षय होता है।
भगवान विष्णु का वास जल में है। इस माह तीर्थ के जल से स्नान का विशेष महत्व है।
पं. धनंजय पांडेय ने बताया कि सावन में द्वादश ज्योतिर्लिंगों के दर्शन-पूजन और वंदन का विशेष महत्व है। काशी में इसकी महिमा विशेष इसलिए है, क्योंकि द्वादश ज्योतिर्लिंग में सर्वप्रधान ज्योतिर्लिंग आदि विशेश्वर को माना जाता है। भगवान आशुतोष के दो रूप हैं। एक रौद्र, दूसरा आशुतोष। इन्हें प्रसन्न करने के लिए सावन में रुद्राभिषेक, तैलाभिषेक, जलाभिषेक किया जाता है। अलग-अलग कामनाओं के लिए अलग-अलग अभिषेक के विधान बनाए गए हैं।