कभी पानी व्यर्थ न बहाएं, जीवनशैली में बदलाव से जल सरंक्षण संभव

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जल मानव शरीर का एक महत्वपूर्ण घटक है, जो हमारे शारीरिक भार का करीब 65-70 फीसद है। सिंधु घाटी, चीन, मेसोपोटामिया और मिस्र, सभी सभ्यताएं अमूल्य जल वाली महान नदियों के तटों पर विकसित हुई थी। जहां जल है, वहां जीवन है। जहां जल नहीं है, वहां खासकर मानव जीवन को बहुत संघर्ष करना पड़ता है।

अपने जल उपभोग में बड़ा अंतर लाना कोई मुश्किल बात नहीं है। जागरूकता और जीवनशैली में कुछ छोटे-मोटे बदलाव के साथ हम जल संरक्षण के साथ पैसे की भी बचत कर सकते हैं। ये बातें सुमित्रा देवी आर्य सीनियर सेकेंडरी स्कूल की प्रिंसिपल उपमा महाजन ने कही। उन्होंने कहा कि जब तक हम जल का संरक्षण करना और उसका उचित उपयोग नहीं सीखेंगे तब तक आने वाली पीढि़यों का भविष्य अंधकारमय लगता है।

ब्रश करते समय नल खुला रखने से 15 लीटर पानी होता है बर्बाद
प्रिंसिपल उपमा महाजन ने कहा कि पृथ्वी पर मनुष्य के लिए कितना जल उपलब्ध है? पहली नजर में, यह एक बेकार सवाल लगता है। पृथ्वी का 72 फीसद हिस्सा पानी है, लेकिन धरती पर उपलब्ध 97 फीसद पानी खारा है। अत: जितना हो सके, हमें जल का सरंक्षण करना चाहिए। इसके लिए हमें प्रयोग न करते समय नल बंद रखना चाहिए। दांत ब्रश करते समय नल खुला रखने से 15 लीटर पानी बेकार हो सकता है। किसी तरह के रिसाव होने पर उसे ठीक करवाना चाहिए। एक बूंद प्रति सेकेंड की दर पर टपकने वाले नलों से हर वर्ष 10,000 लीटर से ज्यादा पानी व्यर्थ हो सकता है।

बूंद-बूंद सिंचाई प्रणाली अपनाएं लोग
प्रिंसिपल महाजन ने कहा कि इसके अलावा बागबानी में इस्तेमाल किए गए जल का 50 फीसद, भाप से उड़ने या जरूरत से ज्यादा पानी देने के कारण बर्बाद हो जाता है। ऐसे में लोग बूंद-बूंद से होने वाली सिंचाई प्रणाली अपनाएं। बगीचे में सुबह या शाम को पानी दें ताकि भाप के कारण कम पानी व्यर्थ हो।

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