गोरखपुर के राष्ट्रीय सेवक एवं लेखक बालेन्दु द्विवेदी से खास बात-चीत

राष्ट्रीय सेवक एवं लेखक बालेन्दु द्विवेदी से खास बात-चीत

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लखनऊ :- लेखक बालेंदु द्विवेदी जी का जन्म 1975,उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले मे ब्रह्मपुर गाँव में हुआ है। उन्होंने वही से अपनी प्रारम्भिक शिक्षा ली,फिर कभी असहयोग आन्दोलन के दौरान चर्चित रहे तो ऐतिहासिक स्थल चौरी – चौरा से माध्यमिक शिक्षा पूरी की । तदनन्तर उच्च शिक्षा के लिए इलाहाबाद गये । वहीं से स्नातक की शिक्षा और दर्शनशास्त्र में एम.ए. की डिग्री हासिल की । बाद में हिन्दी साहित्य के प्रति अप्रतिम लगाव के चलते ‘ राजर्षि टंडन बालेन्दु द्विवेदी मुक्त विश्वविद्यालय से हिन्दी साहित्य में भी एम.ए. किया ।

जीवन के यथार्थ और कटु अनुभवों ने लेखन के लिए प्रेरित किया । ‘ मदारीपुर जंक्शन ‘ उपन्यास के लिए उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान का वर्ष 2017 , का अमृतलाल नगर सर्जना सम्मान हुआ । अखिल भारतीय साहित्य परिषद् , उत्तर प्रदेश का 2018 का साहित्य परिक्रमा सम्मान हुआ। राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान , उत्तर प्रदेश का वर्ष 2018-19 का अमृतलाल नागर पुरस्कार मिल । वैली ऑफ वर्ड्स , उत्तराखण्ड के वर्ष 2018 के वर्ष के श्रेष्ठ पाँच उपन्यासों में नामित रहे । MAMI फ़िल्म फेस्टिवल , मुम्बई के 2018 में आयोजित समारोह में श्रेष्ठ हिन्दी कथानकों में शामिल ।लेखक बालेंदु द्विवेदी जी की  एव्रीडे न्यूज़ की रिपोर्टर श्रुतिका से ख़ास बात चीत :-

Special conversation with national servant and writer Balendu Dwivedi of Gorakhpur

प्र: आइए जानते है बालेंदु द्विवेदी जी के साथ बात चीत के कुछ खास अंश, सबसे पहले हमारे कुछ सवाल उनसे ये थे आपको लिखने का विचार कैसे आते हैं और आपने लिखना कैसे शुरू किया?

  •  लेखक ने बताया कि उनको लिखने का और पढ़ने का शौक हमेशा से था पर वह कभी यह नहीं सोचे थे कि वह लेखक बनेंगे या कोई कहानियां बनाएंगे उन्हें लगता था कि कहानियां लिखने का विचार ऊपर से आते होंगे जिन्हें कुछ ईश्वरीय प्रेरणा मिलती थी आगे बढ़ते हुए बताया कि जब वह 2008 में किसी साहित्यकार का इंटरव्यू पढ़ रहे थे तो उन्होंने बताया कि लिखने के लिए किसी ऊपरी प्रेरणा की जरूरत नहीं है अपने आसपास चीजों को महसूस करके और कल्पना करके हम लिख सकते हैं तभी से लेखक बालेंदु द्विवेदी जी के मन में आया कि वह भी लिख सकते हैं बस तभी से उन्होंने लिखना शुरू किया।

प्र: आपके लिखने की जो प्रक्रिया है क्या आप उपन्यास से हटकर कुछ वास्तविकता के बारे में लिखना पसंद करते हैं।

  • इस प्रश्न के जवाब में लेखक ने कहां की वह वास्तविकता के बारे में लिखना चाहते हैं पर वह लिख नहीं पाते हैं क्योंकि उनके पास समय की कमी है और वह सरकारी सेवक है इसलिए वास्तविकता को लिखना उनके लिए जटिल काम है।

प्र: पहली किताब पर पब्लिक का रिस्पांस कैसा रहा?

  • इसके जवाब में लेखक ने बताया कि उन्होंने पहली उपन्यास मदारीपुर जंक्शन लिखा था तब उन्हें कोई आईडिया नहीं था की पाठक उसे किस तरीके से पढ़ेंगे पर उनका सौभाग्य था कि उन्हें 2 महीने में ही मदारीपुर जंक्शन का दूसरा एडिशन लिखने का प्रस्ताव आया और फिर तीसरे एडिशन का मिलाजुला कर उनकी पहली उपन्यास पर पब्लिक का रिस्पांस काफी हद तक अच्छा था।

प्र: आप की पहली पुस्तक मदारीपुर जंक्शन के ही जैसी दूसरी किताब है या उससे कुछ अलग है?

  • उन्होंने बताया कि उनके लिखने का तरीका काफी व्यंग है और वह उनके लिए बिना व्यंग के लिखना आसान नहीं होता है और वह लिखते भी नहीं है लिख भी नहीं पाते हैं और उनका कहना है उनकी दूसरी किताब वाया फुरसतगंज पहली किताब मदारीपुर जंक्शन से अलग है।

प्र: आप की पहली पुस्तक के प्रकाशन  ने आपके लिखने का तरीका कैसे बदला?

  • उन्होंने कहा कि वह चुनौतियों में जीते हैं और उन्हें खुद को बदलते रहना और पाठकों के समक्ष कुछ नई चीज लाना आनंददायक लगता है।

प्र: साहित्यिक लेखन में आप किस लेखक से प्रेरणा लेते हैं?

  •  उन्होंने बताया कि उनका मन हिंदी में हमेशा हमेशा से लगता था उनका कहना है एक महान कवि व रचनाकार मुंशी प्रेमचंद्र से उन्हें प्रेरणा मिलती है उनके पुस्तको में एक अलग ही प्रकार की हिंदी व साहित्य है जो प्रेरित करती है। उन्होंने बताया कि मुंशी प्रेमचंद्र से बड़ा लेखक दूसरा कोई नहीं है।

प्र: क्या आपको लगता है कि कोई लेखक बन सकता है यदि वह भावनाओं को दृढ़ता से महसूस नहीं करता है।

  • उन्होंने कहा की नहीं कोई भी व्यक्ति बिना भावनाओं के लेखक नहीं बन सकता जब तक भावात्मकता ना हो लेखक नही बन सकते है। लेखक होने की पहली शर्त है कि संवेदनशील हो । शेक्सपीयर ने कहा था की बादल प्रेमी और लेखक एक तरह होते हैं इसमें से जिसके भी अंदर भाव नहीं हो वह कभी लेखक नहीं बन सकता। फिर प्रेमी और बादल का उदाहरण देकर इसको स्पष्ट किया।

प्र: आप अपने युवा लेखको को क्या बताना चाहेंगे?

  • लेखक ने कहा की सबसे जरूरी है अध्ययन फिर चिंतन और अंत में लेखन।

जो नए लेखक होते हैं वह सीधे लिखना शुरु कर देते हैं उनको सलाह देते हुए उन्होंने कहा कि लिखना सीखने के लिए पहले अध्ययन करिए। उसके बाद अपने आसपास के जीवन को देखिए और विचार कीजिए तो लिखना ज्यादा मुकम्मल और प्रभावी होगा।

इसी के साथ हमारा बात चीत का सिलसिला खतम हुआ, उनसे बात करके और उनके बारे में जानने का मौका मिला उन्होंने काफीछीजे बताई उसक साथ ही साथ युवाओ लो प्रेरित भी किया  ।

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